शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

नादिरशाह का भूत हावी है भारतीय नेताओं पर

हमारे नेताओं का प्रेरणा स्त्रोत नादिरशाह है। नादिर शाह वही, नादिर शाह जिसके नाम दिल्ली का कत्लेआम दर्ज है। जो भारतीय सूर्य मणि (कोहिनूर ) और मयूर सिंहासन (तख्त-ए-ताउस) भी लूटकर ले गया। जिसे इतिहास में सबसे घृणित लुटेरों में शुमार किया गया है। फारस (अभी ईरान) से चलकर यह लुटेरा 1739 में भारत आया और 13 फरवरी को करनाल में मुगलों के साथ लड़ाई लड़ी। कमजोर मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला हार गया और उसे बंदी बनाकर नादिरशाह दिल्ली पहुंचा। 22 मार्च 1739 का वह दिन दुनिया के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है, जब नादिर शाह ने अपने फारसी सैनिकों को दिल्ली में कत्लेआम का हुक्म दिया और इतिहास गवाह है कि अकेले उस एक दिन में दिल्ली में 20-30 हजार लोगों का कत्ल हुआ। इसके बाद मुगल खजाना रंगीला ने नादिरशाह के पैरों में रख दिया। कहते हैं कि कोहिनूर को रंगीला ने अपनी पगड़ी में छिपा रखा था। उसे भी नादिरशाह ने नहीं बख्शा और नादिरशाहर दुनिया का वह सबसे नायाब हीरा कोहिनूर और तख्तेताऊस लूटकर अपने साथ फारस ले गया। अब आप कह सकते हैं कि मैं यह गढ़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहा हूं। दरअसल इतिहास के पन्नों में दर्ज यह लुटेरा भारतीय नेताओं कीअंतरात्मा पर छाया हु़आ है। भारत में जब नेता मंत्री बनते हैं तो उन्हें राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल में शपथ दिलाई जाती है। बस सारी गड़बड़ यहीं से शुरू हो जाती है। यह अशोक हॉल दरअसल अंग्रेजों के जमाने में बॉल रूम होता था, मतलब अंग्रेज हुकमरान यहां अपनी पत्नियों के साथ नाच-गाने का आनंद लेते थे। इसी हॉल की दीवार पर चमड़े की एक विशालकाय पेंटिंग लगी है। पेंटिंग में नादिरशाह अपने बेटों के साथ शेर का शिकार कर रहा है। पर्शियन स्टाइल में बनी इस पेंटिंग की खासियत यह है कि इसमें नादिरशाह की आंखों को इस खूबसूरती के साथ उकेरा गया है कि पूरे हाल में कहीं से भी देखा जाए, देखकर ऐसा लगता है जैसे नादिरशाह की आंखें उसे ही देख रही हंै। कहते हैं जब विलिंगडन भारत के वॉयसराय थे तो उनकी पत्नी ने यह पेंटिंग लगवाई थी। अब अंग्रेजों का तो समझ आता है वे लुटेरे थे और लूट की नीयत से भारत आए थे। नादिरशाह उनका आदर्श हो सकता है और उसकी शिकार करती पेंटिंग अंग्रेजों की प्रेरणा का स्त्रोत लेकिन स्वतंत्र भारत में ऐसी पेंटिंग्स का क्या औचित्य है। वह भी उस जगह जहां भारत के मंत्री, उप राष्ट्रपति, न्यायधीश, राज्यपाल आदि भारत के संविधान के प्रति निष्ठा बनाए रखने की शपथ लेते हैं। अब नीचे वे शपथ ले रहे होते हैं और ऊपर से नादिरशाह की आंखें उन्हें घूर रही होती हैं। यही निगाहें नेताजी को भीतर तक भेद जाती हैं। सपने में उसे नादिरशाह ही नजर आता है साथ ही पैदा उसके मन में पैदा हो जाता है देश को लूटने का भाव। प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति बने हैं और साम्राज्यवादी बू वाला महामहिम का संबोधन उन्होंने उतार फैंका है, उन से उम्मीद है कि वे लुटेरी संस्कृति के इस प्रतिक को भी राष्ट्रपति भवन से खदेड़ देंगे। भारतीय लोकतंत्र एवं लोक भावनाओं दोनों के हित में होगा अगर लुटेरे नादिरशाह की ऐसी पेंटिंग का महिमा मंडन राष्ट्रपति भवन में न हो।

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