गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

दिल्ली के कोठे

कोई दौर था जब हुस्न की यह बस्ती घुंघरूओं कीझनकार और गजरे की गंध से शाम होते ही छनकने, महकने लगती। यह बस्ती तब भी बदनाम ही थी, लेकिन तब लंपट रईस आज की तरह इस बस्ती का नाम सुनकर नाकभौं सिकोडऩे की बजाय लार टपकाते थे। गर्म गोश्त का व्यापार यहां तब भी होता था और देश के छोटे शहरों की तवायफें यहां आकर अपने हुस्न और हुनर का (हुनर इसलिए क्योंकि तब तवायफ के लिए अच्छी अदाकारा होना पहली शर्त था) सिक्का जमाने का सपना देखतीं। लखनऊ, कोलकाता और बनारस केकोठों का हर घुंघरू यहांआकरछनकने की तमन्ना रखता। सूरज ढलते ही पनवाडिय़ों की दुकानें आबाद हो जातीं। तांगों, इ और मोटर गाडिय़ों में सवार हो कर इत्र-फुलेल में डूबे शहर के रईस, अंग्रेज अफसर, ठेकेदार, छोटी-बड़ी रियासतों बिगड़ैल नवाबजादे यहां पहुंचने लगते। टोपी और तुर्रेदार पगडिय़ों की शान ही निराली होती। ठे वालियों पर बरसने वाले सिक्कों के वजन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तवायफों की बांदियों पास भी सेर दो सेर सोना केहोना आम बात थी।
हालां अंग्रेज फौजी भी शरीर गर्मी निकालने के लिए अक्सर यहां आते, लेकिन तब भी जीबीरोड की तवायफों का एक स्तर होता था। दूर असम और बंगाल से लाई गई तवायफें अक्सर गोरे फौजियों को सस्ते में अपनी सेवाएं देतीं। लेकिन उस दौर का सस्ता भी फौजियों की एक-एक हफ्ते की तनख्वाह के बराबर हो जाता था। लोहे की पटरियों पर लगातार दौड़ते रेल के इंजन, थककर जैसे कोयला पानी लेने के लिए नई, पुरानी दिल्ली के स्टेशन पर रुकते, ठीक वैसे ही समाज को चलाने वाला तबका जब थक जाता तो जीबी रोड के कोठों पर थकान उतारने चला आता। लेकिन वक्त किसी का गुलाम नहीं है। समय का पहिया घूमता है तो हुस्न का उजाला हर ओर बखेरने वाले नूरानी चेहरों पर झुर्रियों का अंधेरा छा जाता है। ठीक यही हाल इन दिनों दिल्ली के इस लाल बत्ती इलाके का हो गया है। वेश्याओं की यह बस्ती दरअसल बुढ़ा गई है। समय के साथ खुद को बदलने में नाकामयाब रही यह बस्ती हुस्न ढली वेश्या की तरह है, जिसकी ओर अब रईस कतई नहीं देखते और उसके हिस्से में आते हैं सिर्फ पुराने और फटेहाल ग्राहक।
कभी रईसों के राजसी ठाठ देख चुकी यह बस्ती अब निम्न और निम्न मध्यम वर्गीय लोगों की थकान उतारने का जरिया रह गई है। गांव देहात से लाई गई धंधेवालियां जिन्हें एनजीओ की भाषा में सेक्स वर्कर कहा जाता है, इस भड़कीले शहर के युवाओं को रिझाने में नाकामयाब हैं। फूहड़ तरीके से लगाई गई गहरी लाल लिपस्टिक और ग्राहको को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए करारी आवाज में दी गई गालियां उनकी बोल्डनेस को नहीं बदतमीजी को ही दर्शाते हैं। कमाई के लिए आग्रह इतना ज्यादा कि कई बार तो सड़क चलते ग्राहकों का हाथ पकड़ कर भीतर खींचने से भी नहीं चूकतीं। जहां कभी इत्र फुलेल और गजरों की महक गूंजती थी आज सिर्फ सीलन और वीर्य की मिली जुली अजीब सी गंध तारी है। कोठो के कोने गुटखों की पीकों से रंगे पड़े हैं और ऐसे माहौल में एड्स की भयावहता का डर कई गुना होकर नजर आता है। नजाकत और तहजीब की मूर्ति रही तवायफें अब बदतमीजी की मिसाल बन गई हैं। महज 40-40 रुपये में अपने शरीर पर एकबार सवारी का मौका देने वाली ये तवायफें सिर्फ मजदूरों और गवईं अधेड़ों का खिलौना रह गई हैं। ऐसा नहीं है ·कि अब रईसों ने हुस्न की कद्र करना बंद कर दिया है, बल्कि सच यह है तकनीक के पंख लगाकर यह कारोबार पहले के मुकाबले और ज्यादा तेजी से फैला है। वीक एंड्स में एनसीआर के होटलों और फार्महाउसों में पहुंचने वाले दम्पतियों की उम्र का अंतर और उनके हावभाव बता देते हैं कि ये कुछ भी हों पर पति-पत्नी नहीं हैं। संचार के इस युग में रंभा और उर्वशियां कोठे वालियों की बजाय कॉलगर्ल ·के रूप में परिवर्तित हो गई हैं। महंगे मोबाइलों के की पैड पर थिरकती महंगी नेलपॉलिश से सजी अंगुलियां। जींस टॉप जैसे आधुनिक लिबास और महंगी सिगरटों के कश लगाते उनके करीने से सजाए गए खूबसूरत होठ एक रात के लिए बीसियों हजार तक खर्च करा डालते हैं। फिर अगर रंगीन रात की यह साथी बॉलिवुड की कोई अदाकारा हो तो एक रात की फीस लाखों में पहुंच जाती है। कोठेवालियों और कॉलगर्ल्स के बीच पैदा हुआ यह अंतर उनके बच्चों की परवरिश में भी साफ झलकता है। जहां कोठेवालियों के बच्चों को मिलता है वही गला-सड़ा माहौल जो लड़कों को भड़वा और लड़कियों को वेश्या बनने के लिए मजबूर करता है तो कॉलगर्ल्स के बच्चों को भनक भी नहीं लग पाती कि उनकी मां कैसे पेशे से पैसों का पहाड़ पैदा करती है। महंगे पब्लिक स्कूलों में तालीम पाने वाले इन बच्चों ·को हमेशा एक खुशगवार माहौल मिलता है। तकनीक और प्रस्तुतीकरण ने इन कॉलगर्ल्स को कोठेवालियों के मुकाबले खासे आगे ले जाकर खड़ा कर दिया है। क्लाइंट द्वारा मिलने वाले महंगे गिफ्ट और हांगकांग-सिंगापुर जैसी जगहों में शॉपिंग के लिए ले जाया जाना, इन आधुनिक मेनकाओं की हैसियत का अहसास कराने के लिए काफी है।